Hindi Shayri आज़ाद प्यार एक सामाजिक आंदोलन का वर्णन करता है जो शादि जैसे पवित्र बंधन को नहीं मानता। आज़ाद आंदोलन का प्रमुख लक्ष्य ये ता की प्यार को योन विषयों, जैसे शादि करना, जन्म नियंत्रण और व्यभिचार से दूर रखे। यह आंदोलन का मानना है कि ये मुद्दे इस विषय से संबंधित लोगों के लिए चिंताजनक है।

अगरचे आँख बहुत शोख़ियों की ज़द में रही
मिरी निगाह हमेशा अदब की हद में रही

समझ सका न कोई ज़िंदगी की अर्ज़िश को
ये जिंस-ए-ख़ास तराज़ू-ए-नेक-ओ-बद में रही

shayari

बहुत बुलंद हुआ तमकनत से ताज-ए-शही
कुलाह-ए-फ़क़्र मगर नाज़िश-ए-नमद में रही

Hindi Shayri भारतीय उपमहाद्वीप की संस्कृति में ऐसा होता आया है कि अगर कोई शेर लोकप्रीय हो जाए तो वह लोक-संस्कृति में एक सूत्रवाक्य की तरह शामिल हो जाता है। उदाहरण के लिए: तुम्हें याद हो के न याद हो – इसका पूरा शेर है ‘वो जो हम में तुम में क़रार था, तुम्हें याद हो के न याद हो’ और इसी ग़ज़ल का एक और अंश है ‘मुझे सब है याद ज़रा-ज़रा, तुम्हें याद हो के न याद हो’। यह ऐसे दोस्तों-प्रेमियों को शर्मिंदा करने के लिए कहा जाता है जो किसी के साथ अपना पुराना सम्बन्ध भूल गए हों।

हमेशा दर्द से आरी रहा ये ज़ाहिद-ए-ख़ुश्क
ये नाश ज़िंदा सदा गोशा-ए-लहद में रही

दिलों में बैठ गया बरहमन का हुस्न-ए-बयाँ
हदीस-ए-शैख़ तिलिस्मात-ए-रद्द-ओ-कद में रही

कभी बैठे सब में जो रू-ब-रू तो इशारतों ही से गुफ़्तुगू
वो बयान शौक़ का बरमला तुम्हें याद हो कि न याद हो

हुए इत्तिफ़ाक़ से गर बहम तो वफ़ा जताने को दम-ब-दम
गिला-ए-मलामत-ए-अक़रिबा तुम्हें याद हो कि न याद हो

कोई बात ऐसी अगर हुई कि तुम्हारे जी को बुरी लगी
तो बयाँ से पहले ही भूलना तुम्हें याद हो कि न याद हो