क़रीने से अजब आरास्ता क़ातिल की महफ़िल है
जहाँ सर चाहिए सर है जहाँ दिल चाहिए दिल है

हर इक के वास्ते कब इश्क़ की दुश्वार मंज़िल है
जिसे आसाँ है आसाँ है जिसे मुश्किल है मुश्किल है

ज़हे तक़दीर किस आराम ओ राहत से वो बिस्मिल है
कि जिस के सर का तकिया देर से ज़ानू-ए-क़ातिल है

तरीक़-ए-इश्क़ कुछ आसान है कुछ हम को मुश्किल है
इधर रहबर उधर रहज़न यही मंज़िल-ब-मंज़िल है

मुझे तुझ से रुकावट और तू ग़ैरों पे माइल है
मिरा दिल अब तिरा दिल है तिरा दिल अब मिरा दिल है

बढ़ा दिल इस क़दर फ़र्त-ए-ख़ुशी से वस्ल की शब को
मुझे ये वहम था पहलू में ये तकिया है या दिल है

ज़बर्दस्ती तो देखो हाथ रख कर मेरे सीने पर
वो किस दावे से कहते हैं हमारा ही तो ये दिल है

हमारे दिल में आ कर सैर देखो ख़ूब-रूयों की
कि इन्द्र का अखाड़ा है परी-ज़ादों की महफ़िल है

मदारिज-ए-इश्क़ के तय हो सकें ये हो नहीं सकता
ज़मीं से अर्श तक ऐ बे-ख़बर मंज़िल-ब-मंज़िल है

झिड़कते हो मुझे क्यूँ दूर ही से पास आने दो
बढ़ा कर हाथ दिल देता हूँ तुम समझे हो साइल है

सुना भी तू ने ऐ दिल क्या सदा आती है महशर में
यही दिन इम्तिहाँ का है हमारे कौन शामिल है

उड़ाते हैं मज़े दुनिया के हम ऐ ‘दाग़’ घर बैठे
दकन में अब तो अफ़ज़लगंज अपनी ऐश मंज़िल है