न सुनो मेरे नाले हैं दर्द-भरे दार-ओ-असरे आह-ए-सहरे
तुम्हें क्या जो कोई मरता है मिरे ऐ दुश्मन-ए-जाँ बे-दाद-गरे
तिरी सुर्मगीं आँखों के सदक़े इन्हें छेड़ न पंजा-ए-मिज़्गाँ से
अभी ज़ख़्म-ए-जिगर हैं तमाम हरे ऐ महव-ए-तग़ाफ़ुल बे-ख़बरे
लिया इश्क़ में जोग भिकारी बने तिरे नक़्श-ए-क़दम के पुजारी बने
कभी सज्दे किए कभी गिर्द फिरे बुत सीम-बरे ज़र्रीं-कमरे
जो तू ने हज़ारों वादे किए लेकिन वो कभी ईफ़ा न हुए
दिल ही हैं रहे अरमान मिरे ऐ वादा-शिकन बुत हीला-गिरे
‘बेदम‘ कहें क्या किस तरह रहे मर मर के जिए जी जी के मरे
दर-मंज़िल-ए-इशक़श दर-बदरे मजनून-ए-शोरीदा-सरे