Hindi Naat Sharef Nabi-E-Akram Shafi-E-Aazam

नबी-ए-अकरम,शफी-ए-आज़म,दुखे दिलों का पयाम ले लो
तमाम दुन्याँ के हम सताए खड़े हुए है सलाम ले लो

कदम कदम पर है ख़ौफ़े रहज़न, ज़मीन भी दुश्मन फलक भी दुश्मन
ज़माना हम से हुआ बदज़न तुम्ही मोहब्ब्बत से काम ले लो

शिकस्ता कस्ती है तेज़ धारा नज़र से रु-पोश है किनारा
नहीं है कोई न खुदा हमारा खबर तो आली मुकाम ले लो

Hindi Naat Sharef
Hindi Naat Sharef

अजीब मुश्किल में कारबा है न कोई जादू न पस्बा है
बा-शक्ले रहबर छुपे है रहज़न उठो ज़रा इंतिकाम ले लो

कभी तकाज़ा वफ़ा का हम से कभी मज़ाके ज़फ़ा हम से
तमाम दुन्याँ खफा है हम से खबर तो खैरुल अनाम ले लो

ये कैसी मंज़िल पे आ गए हम न कोई अपना न हम किसी के
तुम अपने दामन में आज आका तमाम अपने गुलाम ले लो

नबी-ए-अकरम, शफी-ए-आज़म, दुखे दिलों का पयाम ले लो
तमाम दुन्याँ के हम सताए खड़ेb हुए है सलाम ले लो

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Ahmad Faraz Shayari hindi

तुज से मिलकर तो ये लगता है के अजनबी दोस्त
तो मेरी पहली मोहब्बत थी मेरी आखरी दोस्त

लोग हर बात का अफसाना बना देते है।
ये तो दुनियां है मेरी जान कई दुश्मन कई दोस्त

तेरी क़ामत से भी लिपटी है अमर बेल कोई
मेरी चाहत को भी दुनिया की नज़र खा गयी दोस्त

याद आयी है तो फिर टूट के याद आयी है
कोई गुज़री हुयी मंज़िल कोई भूली हुयी दोस्त

अब आये हो तो एस्सान तुम्हरा लेकिन
वो क़यामत जो गुज़ारनी थी गुज़र भी गयी दोस्त

तेरे लहज़े की थकन में तेरा दिल शामिल है
ऐसा लगता है जुदाई की घडी आ गयी दोस्त

बारिशे संग का मौसम है मेरे शहर में तो
तू ये शीशे सा बदन ले के कहा आ गयी दोस्त

मैं उसे एह-दे-शिकन कैसे समाज लू जिसने
आखरी खत में ये लिखा था फकत आप की दोस्त

Ahmad Faraz Shayari hindi
Ahmad Faraz Shayari hindi

Ahmad Faraz Shayari hindi

क्या ऐसे कम सुखन से कोई गुफ्तुगू करे
जो मुस्तकिल सकूत से दिल को लहू करे

अब तो हमें भी तरके मरासिम का दुख नहीं
पर दिल ये चाहता है के आगाज़ तू करे

तेरे बगैर भी तो गनीमत है ज़िन्दगी
खुद को गाबा के कौन तेरी जुस्तजू करे

अब तो ये आरज़ू है के वो ज़ख़्म खाये
ता ज़िन्दगी ये दिल न कोई आरज़ू करे

तुज को भुला दिल है वो सर्मिन्दा नज़र
अब कोई हादसा ही तेरे रु बा-रु-करे

चुप चाप अपनी आग में जलते रहो फ़राज़
दुन्याँ तो अर्ज़े हाल से बे आबरू करे

Ahmad Faraz Shayari

हर कोई दिल की हतेली पे है सहरा रखे
किस को सैराब करे वो किस को प्यासा रखे

उम्र भर कौन निभाता है ताल्लुक इतना
ए मेरी जान के दुश्मन तुझे अल्ल्हा रखे

हम को अच्छा नहीं लगता कोई हम नाम तेरा
कोई तुझ सा हो तो फिर नाम भी तुझ सा रखे

दिल भी पागल है के उस शख्स से बा-बस्ता है
जो किसी और का होने दे न अपना रखे

काम नहीं तमाये इबादत भी तो हर्ज़े ज़र से
फक़र तो वो है के जो दीन न दुनिया रखे

हस न इतना भी फकीरों के अकेले पन पर
जा खुदा मेरी तरह तुझको भी तन्हा रखे

ये क़नाअत है अताअत है के चाहत है फ़राज़
हम तो राज़ी है वो जिस हाल में जैसा रक्खे

Ahmad Faraz Ghazal

ये हम जो बाग़ बा बहारो का ज़िकर करते है
तू मुददुआ वो गुल तर वो सरो कामत है

बजा ये फुर्सते हस्ती मगर दिले नादान
न याद करके उसे भूलना क़यामत है

चली चले यूही रस्मे वफ़ा बा मुश्के सितम
के तेगे यार बा सर बा दस्ता सलामत है

सुकुते बहर से साहिल लरज़ रहा है मगर
ये खामोसी किसी खामोसी की अलामत है

अजीब वजा का अहमद फ़राज़ है शायर
के दिलो रिदा मगर पैरहन सलामत है

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Ahmad Faraz Poetry hindi

क्या ऐसे कम सुखन से कोई गुफ्तुगू करे
जो मुस्तकिल सकूत से दिल को लहू करे

अब तो हमें भी तरके मरासिम का दुख नहीं
पर दिल ये चाहता है के आगाज़ तू करे

तेरे बगैर भी तो गनीमत है ज़िन्दगी
खुद को गाबा के कौन तेरी जुस्तजू करे

अब तो ये आरज़ू है के वो ज़ख़्म खाये
ता ज़िन्दगी ये दिल न कोई आरज़ू करे

तुज को भुला दिल है वो सर्मिन्दा नज़र
अब कोई हादसा ही तेरे रु बा-रु-करे

चुप चाप अपनी आग में जलते रहो फ़राज़
दुन्याँ तो अर्ज़े हाल से बे आबरू करे

Ahmad Faraz Poetry hindi
Ahmad Faraz Poetry hindi

Ahmad Faraz Poetry hindi

वही जुनु है वही कुचा-ऐ-मलामत है
सिकिस्ता दिल पर भी अहदे वफ़ा सलामत है

ये हम जो बाग़ बा बहारो का ज़िकर करते है
तू मुददुआ वो गुल तर वो सरो कामत है

बजा ये फुर्सते हस्ती मगर दिले नादान
न याद करके उसे भूलना क़यामत है

चली चले यूही रस्मे वफ़ा बा मुश्के सितम
के तेगे यार बा सर बा दस्ता सलामत है

सुकुते बहर से साहिल लरज़ रहा है मगर
ये खामोसी किसी खामोसी की अलामत है

अजीब वजा का अहमद फ़राज़ है शायर
के दिलो रिदा मगर पैरहन सलामत है

Faraz Poetry hindi

ये मेरी ग़ज़लें, ये मेरी नज़्मे
तमाम तेरी हिक़ायते है

ये तजकिरे तेरी जुल्फ के है
ये शेयर तेरी शिकायते है

मैं सब तेरी नज़र कर रहा हु
ये उन ज़मानो की साएते है

जो ज़िन्दगी के नए सफर में
तुझे किसी वक्त याद आये

तो एक इक हर्फ़ जी उठेगा
पहन के अलफ़ाज़ की क़बा में

उदास तन्हाईओं के लम्हों
मैं नाच उठोगी ये अफसरा में

मुझे तेरे दर्द के आलावा भी
और दुख थे ये मानता हु

हज़ार गम थे जो ज़िन्दगी की
तलाश में थे ये जनता हु

मुझे खबर थी तेरे आँचल में
दर्द की रेत छानता हु

और अब ये सारी मताये हस्ती
ये फूल ये ज़ख़्म सब तेरे है

ये दुःख के नोहे ये सुख के नग्मे
जो कल मेरे साथ थे वो अब तेरे है

जो तेरी क़ुरबत तेरी जुदाई में
कट गए रोज़ो शब् तेरे है

वो जिस के जीने की खइस थी
खुद उसके अपने नसीब सी थी

न पूछ उसका के वो दीवाना
बहुत दिनों का उजाड़ चूका है

वो कोकून तो नहीं था लेकिन
कड़ी चट्टानों से लड़ चूका था

वो थक चूका था और उसका तिशा
उसी के सीने में गड चूका था

 

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Ahmad Faraz Kalam Hindi

मैं कितनी वारफ-तागि से उसे सुना रहा था
वो सारी बातें वो सारे किस्से

जो उस से मिलने से पेश्तर
मेरी ज़िन्दगी की हिकयते थी

मैं कहे रहा था
के और भी लोग थे
जिन्हे मेरी आरज़ू थी मेरी तलब थी
के जिनसे मेरी मोहब्बतों का रहा ताल्लुक
के जिनकी मुझपे इनायतेँ थी

मैं कितनी वारफ-तागि से उसे सुना रहा था
मैं कहे रहा था
के उन में कुछ तो मैंने
जान से अजीज़ जाना
मगर इन्ही में से बाज़ को
मेरी बे वफाई से शिकायते थी

मैं एक एक बात
एक एक जुर्म की कहानी
धड़कते दिल कांपते बदन से सुना रहा था

मैं कितनी वारफ-तागि से उसे सुना रहा था
मगर वो पत्थर बानी
मुझे इस तरहे से सुनती रही
के जैसे मेरे लबों पर
किसी मकसद तरीन सफे की आयतें हो

Ahmad Faraz Kalam Hindi
Ahmad Faraz Kalam Hindi

Ahmad Faraz Kalam

चाँद से मैंने कहा ऐ मेरी रातों के रफ़ीक़
तू के सर गुस्ता बा तनहा था सदा मेरी तरह

अपने सीने में छुपाये हुए लाखो घाहो
तू दिखाबे के लिए हस्ता रहा मेरी तरह

सनु-फ़िशा हुस्सन तेरा मेरे हुनर की सूरत
और मुक्क्दर में अँधेरे की रवां मेरी तरहे

वही तक़रीर तेरी मेरी ज़मीन की गर्दिश
वही अफ़लाक का नख़्चीर जफ़ा मेरी तरह

तेरे मंज़र भी है बीरान मेरे ख्वाबो जैसे
तेरे क़दमों में भी जंजीरे वफ़ा मेरी तरह

वही सहराये शबे जीस्त में तन्हाई सफर
वही बिराना-जाने दस्त वला मेरी तरह

आज क्यों मेरी रफक़त भी गिराँ है तुझको
तू कभी इतना भी अफ़सुर्दा नही था मेरी तरह

चाँद ने मुझसे कहा ए मेरे पागल शायर
तू के महरम है मेरे किर्या तन्हाई का

तुझको मालूम है जो ज़ख़्म मेरी रूह में है
मुझको हासिल है सर्फ तेरी सना-साई का

मोज़ीजन है मेरे इतराफ़ में एक बहरे सकूट
और चर्चा है फ़िज़ा में तेरी गोयाई का

आज की शब् मेरे सीने पे वो क़बील उतरा
जिसकी गर्दन पे दमकता है लहू भाई का

मेरे दामन में न हिरे है न सोना न चाँदी
और बा-जुज़ उसके नहीं शोक तमन्नाई का

मुझको दुख है के न ले जाये ये दुन्याँ वाले
मेरी दुन्याँ है खज़ाना मेरी तन्हाई का

Faraz Kalam Hindi

दर्द की राहें नहीं आसान ज़रा आहिस्ता चल
ऐ सबुक-रुए हरीफ़े जान ज़रा आहिस्ता चल

मंज़िलो पर क़ुर्ब का नशा हवा हो जायेगा
हम सफर वो है तू ऐ नादान ज़रा आहिस्ता चल

न मुरादी की थकन से जिस्म पत्थर हो गया
अब सकुट कैसी दिले-बीरान ज़रा आहिस्ता चल

जाम से लब तक हज़ारों लग्ज़िशें है खुश न हो
अब भी महरूमी का है इमका ज़रा आहिस्ता चल

हर थका हारा मुसाफिर रेत की दिवार है
ऐ हवाएं मंज़िले जाना ज़रा आहिस्ता चल

इस नगर में जुलफ का साया न दामन की हवा
ऐ गरीबे शहर न परसा ज़रा आहिस्ता चल

अबला पा तुझको किस हसरत से तकते है फ़राज़
कुछ तो ज़ालिम पास हमराह ज़रा आहिस्ता चल

Ghazal In Hindi

हुयी है शाम तो आँखों में बस गया तू फिर तू
कहा गया है मेरे शहर के मुसाफिर तू

मेरी मिसाल एक नखले खुस्के सहरा हु
तेरा ख्याल के शाखे चमन का ताहिर तू

मैं जनता हु के दुन्याँ तुझे बदल देगी
मैं मानता हु के एसा नहीं बज़ाहिर तू

हसी खुसी से बिछड़ जा अगर बिछड़ना है
ये हर मुकाम पर क्या सोचता है आखिर तू

फ़िज़ा उदास है रुत्त मुज़म्मिल है मैं चुप हु
हो सके तो चला आ किसी की खातिर तू

फ़राज़ तूने उसे मुश्किल में डाल दिया
ज़माना साहिबे ज़ार है और सिर्फ शायर तू

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Ahmad Faraz Best Hindi Shayari

दिल तो वो बर्ग-ए-ख़िज़ाँ है, के हवा ले जाये
गम वो आंधी है के सहरा भी उड़ा ले जाये

कौन लाया तेरी मैफिल में हमें होश नहीं
कोई आये तेरी मैफिल से उठा ले जाये

और से और हुए जाते है मियारे वफ़ा
अब मताये दिल बा जान भी कोई क्या ले जाये

जाने कब उभरे तेरी याद का डूबा हुआ चाँद
जाने कब धियान कोई हम को उड़ा ले जाये

यही आवारगी ए दिल है तो मंज़िल मालूम
जो भी आये तेरी बातों में लगा ले जाये

दस्ते ग़ुरबत में तुम्हे कौन पुकारेगा फ़राज़
चल पड़ो खुद ही जिधर दिल की सदा ले जाये

Ahmad Faraz Best Hindi Shayari
Ahmad Faraz Best Hindi Shayari

Faraz Best Hindi Shayari

ये इंतज़ार की लज़्ज़त न आरज़ू की थकन
भुझी है दर्द की शम्मे के सो गया है बदन

सुलग रही है न जाने किस आँच से आखे
न आसुंओ की तलब है न रत जगो की जलन

दिले फरेब ज़दा दावते नज़र पे न जा
ये आज के क़द बा गेसू है, कल के दारो रसन

गरिबे शहर किसी साया सजर में न बैठ
के अपनी छायों में खुद जल रहे है सर्द बा समन

बहारे क़ुर्ब से पहले उजाड़ देती है
जुदायिओं की हवाएं मोहब्बतों के चमन

वो एक रात गुज़र भी गयी मगर अब तक
विसाले यार की लज़्ज़त से टूटता है बदन

फिर आज शब् तेरे कदमो की चाप के हमराह
सुनाई देती है दिले न मुराद की धरकन

ये जुलम देखो के तू जाने शायरी है मगर
मेरी ग़ज़ल में तेरा नाम भी है जुर्म सुख़न

अमीरे शहर गरीबों को लूट लेता है
कभी बे हिलिए मज़हब कभी बे नाम बतन

हवाएं दहर से दिल का चिराग क्या भुजता
मगर फ़राज़ सलामत है यार का दामन

Ahmad Faraz Hindi Ghazal

जिस से तबियत बड़ी मुश्किल से लगी थी
देखा तो वो तस्बीर हर एक दिल से लगी थी

तन्हाई में रोते है के यूँ दिल को सुकून हो
ये चोट किसी साहिबे मैफिल से लगी थी

ए दिल तेरे आशोब ने फिर हशर जगाया
बे दर्द अभी आँख भी मुश्किल से लगी थी

खिलकत का अजब हाल था उस कुए सितम में
साये की तरह दामने क़ातिल से लगी थी

उतरा भी तो कब दर्द का चढ़ता हुआ दरया
जब कस्ती ए जान मौत के साहिल से लगी थी

Best Hindi Ghazal

मुझसे पहले तुझे जिस शख्स ने चाहा उसने
शायद अबभी तेरा गम दिल से लगा रक्खा हो
एक बे नाम सी उम्मीद पे अब भी शायद
अपने ख्याबो के उम्मीदों को सजा रक्खा हो

मैंने माना के वो बेगाना पैमाने वफ़ा
खो चूका है किसी और की रा-नाई में
शायद के अब लौट के आये न तेरी मैफिल में
और कोई दुख न रुलाये तुझे तन्हाई में

मैंने माना के शब्-बा-रोज़ के हंगामा में
वक्त हर गम को भुला देता है रफ्त्ता रफ्ता
चाहे उम्मीद की शम्मा हो या यादों के चिराग
मुस्तकिल बूद भुजा देता है लम्हा लम्हा

फिर भी माज़ी का ख्याल आता है गहे गहे
मुद्दतों दर्द की लो तो नहीं कर सकते
ज़ख़्म भर जाये मगर दाग तो रहता है
दुरियोँ से कभी यादे तो नहीं मरती

ये भी मुमकिन है के एक दिन वो पशेमां हो कर
तेरे पास आये जमने से किनारा कर ले
तू तो मासूम भी है जूद फरामोश भी है
उसकी पैमा सिकनी को भी गाबरा कर ले

और मैं जिसने तुझे अपना मसीहा समजा
एक ज़ख़्म और भी पहले की तरह सहे जायूँ
इस से पहले भी कई अहेड़े वफ़ा टूटे है
इस ही दर्द के साथ चुप चाप गुज़र जायूँगा

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Ahmad Faraz Hindi Poetry lyrics

अब के रुत बदली तो खुशबू का सफर देखेगा कौन
ज़ख़्म फूलो की तरह महकेंगे, पर देखे गा कौन।

देखना सब रक्से बिस्मिल में मगन हो जायेगे
जिस तरफ से तीर आएगा, उधर देखे गा कौन।

ज़ख़्म जितने भी थे सब मंसूब क़ातिल से हुए
तेरे हाथो ने निसान ऐ चारा गर देखे गा कौन।

वो होश हो या वफ़ा हो बात महरूमी की है
लोग तो फल फूल देखे गे शजर देखे गा कौन।

मेरी आवाज़ों के साये मेरे वाम बा दर पे है
मेरे लफ़्ज़ों में उतर कर मेरा घर देखेगा कौन।

हम चिरागे शब् ही जब ठहरे तो फिर क्या सोचना
रात थी किस का मुक्कदर और सहर देखेगा कौन।

हर कोई अपनी हवा में मस्त फिरता है फ़राज़
सहेरे न पुरसँ में तेरी चश्मे तर देखेगा कौन

Ahmad Faraz Hindi Poetry lyrics
Ahmad Faraz Hindi Poetry lyrics

Ahmad Faraz ki tareef

उर्दू शायरी वाली, मीर, ग़ालिब, इकबाल,जोश, जिगर, फ़िराक, और फैज़ के खयालो से मराहिल तय करती हुयी
अहदी नू में अहमद फ़राज़ तक पहुंची। तो क़बूले आम की तमाम सरहदों को पार कर गयी

अहमद फ़राज़ की कसीरुल-हाजात और हमा-रंग शायरी बिला-शुबा उर्दू के शायरी अदब का नुक़्तए उरूज है
और इस अहेद का मुक़्क़मल मंज़र नामा भी। अहमद फ़राज़ इस लिहाज़ से भी उर्दू के ऐसे खुश नसीब शायर है। जिन्हे दुनिया
भर में मुनअकिद होने वाले शायरी इज्तिमायत में सब से ज़ादा मकबूलियत हासिल हुयी

इस हकीकत से तो यक़ीनन फ़राज़ के मुखालफीन भी इंकार नहीं कर सकते के फी ज़माना फ़राज़ आलमी शोरत और मकबूलियत के
जिस मुकाम पर फ़ाइज़ है वहां दूर दूर तक उनका सनी नज़र नहीं आता

अहमद फ़राज़ की शायरी उर्दू में एक नयी और इंफिरादि आवाज़ की हैसियत रखती है। उनके विजदान और जमालियाती सऊर की एक
ख़ास सख्सियत है। जो निहायत दिल कश खादोंखाल से मिली है।

उनके सोचने का अंदाज़ निहायत हसास और पुर खुलूस है। उनकी शायरी सिर्फ क्लासिक या सिर्फ रूहानी शायरी नहीं कहा जा सकता है।
बक्ले दौरे हाज़िर के लतीफ़ ज़हनी रद्दे अमल का सच्चा नमूना कहा सकता है

Ahmad Faraz Poetry lyrics

सितम का आशना था वो सभी के दिल दुखा गया
के शामे गम तो काट ली सहर हुयी चला गया

हवाएं ज़ालिम सोचती है किस भबर में आ गयी
वो एक दिया भुजा तो सैकड़ो दिए जला गया

सुकूत में भी उस के एक आदये दिल नवाज़ थी
वो यारे कम सुखन कई हिकयते सुना गया

अब एक हुजुमे आसीकां है हर तरफ रबा-दबा
वो एक रह नूर जो खुद को काफला बना गया

दिलों से वो गुज़र गया शुआयें महेर की तरह
घंने उदास जंगलों में रास्ता बना गया

कभी कभी तो यूँ हुआ है इस रियाज़ो बहर में
के एक फूल गुलिस्तां की आबरू बचा गया

शरीके बज़्मे दिल भी है चिराग भी है फूल भी
मगर जो जाने अंजुमन था वप कहा चला गया

उठो सितम ज़दो चले ये दुख कड़ा सही मगर
वो खुश नसीब है ये ज़ख़्म जिसको रास आ गया

ये आंसुओं के हार खु बहा नहीं है दोस्तों
के वो तो जान दे के क़र्ज़े दोस्ताँ निभा गया

Faraz Poetry

फिर तेरे न खबर शाम में आयी
ज़हर अब की तल्ख़ सी मेरे जाम में आयी

ऐ काश न पूरा हो कोई भी मेरा अरमान
और ये तमन्ना दिले न काम में आयी

क्या क्या न ग़ज़ल उसकी जुदायी में कहि है
बर्बादी जान भी तो किसी काम में आयी है

कुछ तेरा सरापा मेरे अशआर में उतरा
कुछ शायरी मेरी तेरे इनाम में आयी है

कब तक ग़मे दौरा मुझे फ़ितरक में रखता
आखिर को तो दुन्याँ भी मेरे दाम में आयी है

कल शाम के था शेखे हरम साहिबे मैफिल
शेबा की परी जमा अहराम में आयी है

हर चंद फ़राज़ एक फकीरे सरे रह हु
पर मुमलकिते हर्फ़ मेरे नाम में आयी है

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Ahmad Faraz Most Sad shayari

अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते है
फ़राज़ अब ज़रा लायज़ा बदल कर देखते है

जुदा होना तो मुकद्दर है फिर भी जाने सफर
कुछ और दूर ज़रा साथ चल के देखते है

रहे वफ़ा में हरीफ़े खराम कोई तो हो
सो अपने आप से आगे निकल के देखते है

तू सामने है तो फिर क्यों यकीन नहीं आता
ये बार बार जो आखो को मल के देखते है

ये कौन लोग है मौजूद तेरी मैफिल में
जो लालचों से तुझे, मुझको जल के देखते है

ये क़ुर्ब क्या है,के एकजान हुए न दूर रहे
हज़ार एक ही क़ल्ब में ढल के देखते है

न तुझको मात हुयी है न मुझको मात हुयी
सो अब के दोनों ही चालें बदल कर देखते है

ये कौन है सरे साहिल के डूबने वाले
समन्दरों की तहों से उछाल कर देखते है

अभी तलाक तो न कुंद हुए न राख हुए
हम अपनी आग में हर रोज़ जल कर देखते है

बहुत दिनों से नहीं है कुछ उसकी खबर
चलो फ़राज़ को ए यार चल के देखते है

Ahmad Faraz Most Sad shayari
Ahmad Faraz Most Sad shayari

Ahamad Faraz ka isk

ख्वाबे गुले परेशां अहमद फ़राज़ की किताब से हवाला लिया गया है
जिसमे अहमद फ़राज़ जब हज करने गये तो उनकी मुलाकात एक औरत से हुयी जो मिलने के बाद बहुत खुश हुयी
उसने बोला आप फ़राज़ साहब हो तो फ़राज़ ने कहा है

वो औरत बोली आप रुको मैं अपने अब्बा से आप को मिलबाना चाहती हु वो आप को बहुत याद करते है
जब फ़राज़ की मुलाकात उन बुज़ुर्ग से हुयी वो बहुत खुश हु। उन्होंने कहा की अगर हुस्न बा जमाल और इश्क़ मोहब्बत की आला दर्जे
की शायरी घटिया होती तो ये और ग़ालिब बल्कि दुन्याँ भर के अज़ीम शायरों के यहाँ घटिआ शायरी के अम्बार के सिबा और क्या होता
फ़राज़ की शायरी में पेश तर यक़ीनन हुस्न बा इश्क़ ही की कार फर्माइयाँ है।

और ये वो मौज़ू है। जो इंसानी ज़िन्दगी में से ख़ारिज हो जाये तो, इंसानो के बातिन सहरा में बदल जाये।
मगर फ़राज़ तो भरपूर ज़िन्दगी का शायर है।
वो इंसान के बुननयादी जज़्बों के अलाबा इस आशोब का भी शायर है। जो पूरी इंसानी ज़िन्दगी को मोहित किये हुए है।
उसने जहाँ इंसान की ”महरूमियाँ” मज़लूमातों और सिकिस्त को अपनी नज़म बा ग़ज़ल का मौज़ू बनाया है
वही जुलम बा जबर के अनासिर में टूट टूट कर बरसा है

 Ahamad faraz Kalaam,Ghazal

तुम पर भी न हो गुमान मेरा
इतना भी कहाँ न मान मेरा

मैं दिखते हुए दिलों का ईसा
और जिस्म लहू लुहान मेरा

कुछ रोशनी शहर को मिली तो
जलता है जले मकान मेरा

ये ज़ात ये क़ायनात क्या है
तू जान मेरी जहां मेरा

तू आया तो कब पलट के आया
जब टूट चूका था मान मेरा

जो कुछ भी हुआ एहि बहुत है
तुझको को भी रहा है ध्यान मेरा

Faraz Most Sad shayari

तवाफ़े मंज़िले जाना हमें भी करना है
फ़राज़ तुम भी अगर थोड़ी दूर मेरे साथ चलो

देखो ये मेरे ख्याब थे, देखो ये मेरे ज़ख़्म है
मैंने तो सब हिसाब जान बर-सरे आम रख दिया

चमन में नगमा सरायी के बाद याद आये
क़फ़स के दोस्त रिहाई के बाद याद आये

वो जिन को हम तेरी क़ुरबत में भूल बैठे थे
वो लोग तेरी जुदाई के बाद याद आये

हरिमे नाज़ की खैरात बाँटने वाले
हर एक दर की गदायी के बाद याद आये

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Ahmad Faraz Hindi Ghazal Shayari

बदन में आग  है, चेहरा गुलाब जैसा है
के ज़हर-ए-गम का नशा, शराब जैसा है

वो सामने है मगर तिशनगी नहीं जाती
ये क्या सितम है, के दरया शराब जैसा है

कहा वो क़ुर्ब के अब तो ये हाल है जैसे
तेरे फ़िराक़ का आलम भी ख्याब जैसा है

मगर कभी कोई देखे कोई पड़े तो सही
दिल आईना है, तो चेहरा गुलाब जैसा है

बाहारे खु से चमन ज़ार बन गए मकतल
जो नखले दार है, शाखे गुलाब जैसा है

फ़राज़ संगे मलामत से ज़ख़्म ज़ख़्म सही
हमही अज़ीज़ है, खाना ख़राब जैसा है

अहमद फ़राज़ की शायरी में आप को दर्द और मोहब्बत दोनों ही देखने को मिलते है फ़राज़ का एक शेयर याद आता ह।
जिसमे मोहबत का अंदाज़ आप को नज़र आएंगे

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते है
सो उसके शहर में कुछ दी ठहर के देखते है

रंजिश ही सही दिल दुखने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ जाने के लिए आ

फ़राज़ ने इस में अपने आप को फ़ना कर लिया और हर सितम को अपने लिए उठाया जिसमे दर्द का एहसास नज़र आता है
की कुछ भी सही मगर तू आ तो सही
फ़राज़ का इश्क कमाल का इश्क है फ़राज़ जिस तरहे से इश्क को बताते है शायद किसी ने बताया हो जिसमे विशाल और फ़िराक दो शामिल है
आप बयां करते है की

आशिकी में मीर जैसा ख़्वाब मत देखा करो
पागल हो जायो गे महताब मत देखा करो

फ़राज़ अपने वक्त के ग़ालिब हुए है वैसे उनको क्रिकेट का भी शोक था

Ahmad Faraz Hindi Ghazal
Ahmad Faraz Hindi Ghazal

Ahmad Faraz Shayari

तड़प उठूं भी तो ज़ालिम तेरी दोहाई न दू
मैं ज़ख़्म ज़ख़्म हु फिर भी तुझे दुहाई न दू

तेरे बदन में धरकने लगा हु दिल की तरहे
ये और बात है के अब भी तुझे सुनाई न दू

खुद अपने आप को परखा तो ये नदामत है
के अब कभी उसे इल्ज़ाम बे वफाई न दू

मेरी वका ही मेरी खुवाईश ए गुन्हा में है
मैं ज़िन्दगी को भी ज़हर पार साई न दू

जो ठन गयी है तो यारी पे हर्फ़ क्यों आये
हरीफ़े जान को भी ताने आशनाई न दू

मुझे भी ढूंढ कभी माहबे आईना दारी
मैं तेरा अक्स हु लेकिन तुझे दिखाई न दू

ये हौसला भी बड़ी बात है शिकस्त के बाद
के दुसरो को तो इल्ज़ाम नार साई न दू

फ़राज़ दौलते दिल है मताये महरूमी
मैं जामे जम के हौज़ कासा गदाई न दू

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Ahmad Faraz Ghazal hindi

Ahmad Faraz Ghazal hindi

Ahmad Faraz Ghazal hindi

अपनी ही आवाज़ को बे-शक कान में रखना
लेकिन शहर की खामोशी भी धियान में रखना

मेरे झूट को खोलो भी और तोलो भी तुम
लेकिन अपने सच को भी मीज़ान में रखना

कल तारिख यक़ीनन खुद को धो-राएगी
आज के एक एक मंज़र को पैचान में रखना

बज़म में यारों की शमसीर लहू में तर है
रम्ज़ में लेकिन तलबारो को मियान में रखना

आज तो ए दिल तरके-ताल्लुक पर तुम खुश हो
कल के पछताबे को भी इमकान में रखना

इस दरया के आगे एक समंदर भी है
और वो बे साहिल है ये भी धयान में रखना

इस मौसम में गुलदानों की रसम कहा है
लोगो अब फूलों को आतिस दान में रखना

अहमद फ़राज़ का जन्म कोहाट (तब ब्रिटिश भारत) में सैयद मुहम्मद शाह बरक़ के यहाँ हुआ था।
उनके भाई सैयद मसूद कौसर हैं। वह अपने परिवार के साथ पेशावर चले गए। उन्होंने प्रसिद्ध एडवर्ड्स कॉलेज, पेशावर में अध्ययन किया
और पेशावर विश्वविद्यालय से उर्दू और फ़ारसी में परास्नातक प्राप्त किया। अपने कॉलेज जीवन के दौरान, प्रगतिशील कवि फैज अहमद फैज और अली सरदार जाफरी उनके सबसे अच्छे दोस्त थे,
जिन्होंने उन्हें प्रभावित किया और उनके आदर्श बन गए। जातीय रूप से एक पश्तून सैयद, अहमद फ़राज़ ने पेशावर विश्वविद्यालय में फ़ारसी और उर्दू का अध्ययन किया।
बाद में वे पेशावर विश्वविद्यालय में व्याख्याता बने।

Ahmad Faraz Ghazal hindi
Ahmad Faraz Ghazal hindi

अहमद फ़राज़ एक पाकिस्तानी उर्दू कवि थे।
उन्हें पिछली शताब्दी के सर्वश्रेष्ठ आधुनिक उर्दू कवियों में से एक के रूप में प्रशंसित किया गया था।
‘फ़राज़’ उनका कलम नाम है। 25 अगस्त 2008 को इस्लामाबाद में उनका निधन हो गया।
उन्हें पाकिस्तान सरकार द्वारा हिलाल-ए-इम्तियाज, सितारा-ए-इम्तियाज और उनकी मृत्यु के बाद हिलाल-ए-पाकिस्तान से सम्मानित किया गया।

Ahmad Faraz shayri ghazal

गिरफ्ता दिल अंदलीप घायल गुलाब देखे
मोहब्बतों ने सभी लम्हो में अज़ाब देखे

वो दिन भी आये सलीब गर भी सलीब पर हूँ
ये शहर एक रोज़ फिर से योमे हिसाब देखे

ये सुबहेका ज़ेब तो रात से भी तबील तर है
के जैसे सदयाँ गुज़र गयी आफ़ताब देखे

वो चश्मे महरूम कितनी महरूम है के जिस ने
न खुआब देखे न रत-जगो के अज़ाब देखे

कहाँ की आँखे के अब तो चेरो पे आबले है
और आब्लो से भला कोई कैसे खुआब देखे

अजब नहीं है जो खुश्बुओं से है शहर ख़ाली
के मैंने दहलीज़ क़ातिल पर गुलाब देखे

ये सा-आते दीद और बये-सत बढ़ा गयी है
जैसे कोई जुनु ज़दा महताब देखे

मुझे तो हम मकतबी के दिन आ गए है
के मैं उसे पड़ रहा हु और वो किताब देखे

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Adoo Shayari

Adoo Shayari

Adoo Shayari

धोके खता रहा बार बार अदू से
फिर भी करता रहा ऐतबार अदू से

घूमता फिरता है ज़हन बा दिल में लिए
मसले ज़िन्दगी के हज़ार दुश्मन से

अपने मतलम की खातिर मेरे आप के
डालता है दिल-लो में दरार अपनों से

कोई आता नहीं मुद्दतों तक यहाँ
किस का करता है ये इन्तिज़ार अदू से

मसले रंज-बा-गम जाल फैलाए है
होता रहता है हर दम शिकार रकीब से

ठोकरे ज़ख़्म पर ज़ख़्म खाता रहा
चाहता है मगर इक्तिदार अदू से

इत्तिफाकन ही तुमको मिले तो मिले
सख्सियत से बहुत बा बेकार अदू से

बे-बसी मुफलिसी तंग-दस्ती का है
चलता फिरता इस्तिहार अदू से

भूल होती है सरज़द कभी न कभी
चाहे कितना ही हो होशयार अदू से

न-तबं ज़र्द चेरो पे अंजुम थकन
जिस तरफ देखिए बे-करार अदू से

अदू को दुश्मन या रकीब भी कहते है, अदू का कोई रूप नहीं है ,जिसे हम सब कुछ समझते है वही मेरा दुश्मन निकलता है
अदू को पैचान करना बहुत मुश्किल काम है आज के वक्त में
एसे लोग हर दौर में रहे है और आज भी है, हमें जिस के ऊपर सब से ज़ादा भरोसा होता है वही अपना दुश्मन निकलता है,

ज़िन्दगी के हर मुकाम पर अगर आप के साथ कोई अपना होगा तो साथ में आप का कोई रकीब भी होगा
एसे लोगो से न तो कोई आज तक बच पाया है न ही बच पायेगा, इनके बात करने का अंदाज़ इनकी हमदर्दी एसी होती है
की बहुत अच्छे या बहुत होशयार लोग भी धोका खा जाते है, एसे लोग हमेसा अपने मतलब के लिए ही मिलते है, जब इनका
काम हो जाता है, तो ये बहुत आसानी से आप को धोका दे कर चले जाते है

और आप खामोश हो जाते है किसी शायर ने इनकी फितरत से मिलते जुलते कुछ शेयर लिखे है, जो मुझको याद आते है
अदू की बे-वफाई पे वो शायद कुछ यूँ है की

Shayari Adoo hindi

अब कहाँ उनका हसीं साथ चलो सो जाये
फीकी फीकी है हर एक रात चलो सो जाये

मुन्तक़िल कर दे दिल-औ ज़हन कहीं और अपने
जान ले-लेना ये सदमात चलो सो जाये

हिजर की शब् तो यूँ ही जागते गुज़री सारी
अब सहर से है मुलाकात चलो सो जाये

इस में शायर अपने ख्याल को हसीन अंदाज़ में बयां कर रहा है

Adoo Shayari
Adoo Shayari

मोहब्बत की रह में भी रकीब आखरी हद तक कोई कसर नहीं रखता है, जब तक के वो दो दिलो को अलग न कर ले
हज़ार ऐब लगता है न जाने कितने फ़ितने फैलता है
कभी ज़ात का मसला कभी दौलत का, कभी समाज का कभी किसी का कभी का जहाँ पर प्यार होता है ये नफरत का बीज बोता
है लेकिन अफसोस की आज तक हम लोग एसे लोगो से अलग नहीं हो प् रहे है समज नहीं आता किस पे यकीन करे

मौसमे गुल में भी अब सोये सोये रहते है
अब कहा यार वो जज़्बात चलो सो जाये

अब कोई और भरम अपना रहा न क़ायम
खा चुके उन से भी अब मात चलो सो जाये

हुकुमरानी जहाँ फुलू की रहा करती थी
आज काँटों की है बरात चलो सो जाये

कर रहे है मुझे ज़ादा ही परेशान हर पल
ज़िन्दगी अब तेरे खाद-शात चलो सो जाये

अबर-आलूद फ़ज़ा हो गयी सा-फाफ अंजुम
हो चुकी आँखों से बरसात चलो सो जाये

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