दिल तो वो बर्ग-ए-ख़िज़ाँ है, के हवा ले जाये
गम वो आंधी है के सहरा भी उड़ा ले जाये
कौन लाया तेरी मैफिल में हमें होश नहीं
कोई आये तेरी मैफिल से उठा ले जाये
और से और हुए जाते है मियारे वफ़ा
अब मताये दिल बा जान भी कोई क्या ले जाये
जाने कब उभरे तेरी याद का डूबा हुआ चाँद
जाने कब धियान कोई हम को उड़ा ले जाये
यही आवारगी ए दिल है तो मंज़िल मालूम
जो भी आये तेरी बातों में लगा ले जाये
दस्ते ग़ुरबत में तुम्हे कौन पुकारेगा फ़राज़
चल पड़ो खुद ही जिधर दिल की सदा ले जाये
Ahmad Faraz Best Hindi Shayari
Faraz Best Hindi Shayari
ये इंतज़ार की लज़्ज़त न आरज़ू की थकन
भुझी है दर्द की शम्मे के सो गया है बदन
सुलग रही है न जाने किस आँच से आखे
न आसुंओ की तलब है न रत जगो की जलन
दिले फरेब ज़दा दावते नज़र पे न जा
ये आज के क़द बा गेसू है, कल के दारो रसन
गरिबे शहर किसी साया सजर में न बैठ
के अपनी छायों में खुद जल रहे है सर्द बा समन
बहारे क़ुर्ब से पहले उजाड़ देती है
जुदायिओं की हवाएं मोहब्बतों के चमन
वो एक रात गुज़र भी गयी मगर अब तक
विसाले यार की लज़्ज़त से टूटता है बदन
फिर आज शब् तेरे कदमो की चाप के हमराह
सुनाई देती है दिले न मुराद की धरकन
ये जुलम देखो के तू जाने शायरी है मगर
मेरी ग़ज़ल में तेरा नाम भी है जुर्म सुख़न
अमीरे शहर गरीबों को लूट लेता है
कभी बे हिलिए मज़हब कभी बे नाम बतन
हवाएं दहर से दिल का चिराग क्या भुजता
मगर फ़राज़ सलामत है यार का दामन
Ahmad Faraz Hindi Ghazal
जिस से तबियत बड़ी मुश्किल से लगी थी
देखा तो वो तस्बीर हर एक दिल से लगी थी
तन्हाई में रोते है के यूँ दिल को सुकून हो
ये चोट किसी साहिबे मैफिल से लगी थी
ए दिल तेरे आशोब ने फिर हशर जगाया
बे दर्द अभी आँख भी मुश्किल से लगी थी
खिलकत का अजब हाल था उस कुए सितम में
साये की तरह दामने क़ातिल से लगी थी
उतरा भी तो कब दर्द का चढ़ता हुआ दरया
जब कस्ती ए जान मौत के साहिल से लगी थी
Best Hindi Ghazal
मुझसे पहले तुझे जिस शख्स ने चाहा उसने
शायद अबभी तेरा गम दिल से लगा रक्खा हो
एक बे नाम सी उम्मीद पे अब भी शायद
अपने ख्याबो के उम्मीदों को सजा रक्खा हो
मैंने माना के वो बेगाना पैमाने वफ़ा
खो चूका है किसी और की रा-नाई में
शायद के अब लौट के आये न तेरी मैफिल में
और कोई दुख न रुलाये तुझे तन्हाई में
मैंने माना के शब्-बा-रोज़ के हंगामा में
वक्त हर गम को भुला देता है रफ्त्ता रफ्ता
चाहे उम्मीद की शम्मा हो या यादों के चिराग
मुस्तकिल बूद भुजा देता है लम्हा लम्हा
फिर भी माज़ी का ख्याल आता है गहे गहे
मुद्दतों दर्द की लो तो नहीं कर सकते
ज़ख़्म भर जाये मगर दाग तो रहता है
दुरियोँ से कभी यादे तो नहीं मरती
ये भी मुमकिन है के एक दिन वो पशेमां हो कर
तेरे पास आये जमने से किनारा कर ले
तू तो मासूम भी है जूद फरामोश भी है
उसकी पैमा सिकनी को भी गाबरा कर ले
और मैं जिसने तुझे अपना मसीहा समजा
एक ज़ख़्म और भी पहले की तरह सहे जायूँ
इस से पहले भी कई अहेड़े वफ़ा टूटे है
इस ही दर्द के साथ चुप चाप गुज़र जायूँगा
अब के रुत बदली तो खुशबू का सफर देखेगा कौन
ज़ख़्म फूलो की तरह महकेंगे, पर देखे गा कौन।
देखना सब रक्से बिस्मिल में मगन हो जायेगे
जिस तरफ से तीर आएगा, उधर देखे गा कौन।
ज़ख़्म जितने भी थे सब मंसूब क़ातिल से हुए
तेरे हाथो ने निसान ऐ चारा गर देखे गा कौन।
वो होश हो या वफ़ा हो बात महरूमी की है
लोग तो फल फूल देखे गे शजर देखे गा कौन।
मेरी आवाज़ों के साये मेरे वाम बा दर पे है
मेरे लफ़्ज़ों में उतर कर मेरा घर देखेगा कौन।
हम चिरागे शब् ही जब ठहरे तो फिर क्या सोचना
रात थी किस का मुक्कदर और सहर देखेगा कौन।
हर कोई अपनी हवा में मस्त फिरता है फ़राज़
सहेरे न पुरसँ में तेरी चश्मे तर देखेगा कौन।
Ahmad Faraz Hindi Poetry lyrics
Ahmad Faraz ki tareef
उर्दू शायरी वाली, मीर, ग़ालिब, इकबाल,जोश, जिगर, फ़िराक, और फैज़ के खयालो से मराहिल तय करती हुयी
अहदी नू में अहमद फ़राज़ तक पहुंची। तो क़बूले आम की तमाम सरहदों को पार कर गयी
अहमद फ़राज़ की कसीरुल-हाजात और हमा-रंग शायरी बिला-शुबा उर्दू के शायरी अदब का नुक़्तए उरूज है
और इस अहेद का मुक़्क़मल मंज़र नामा भी। अहमद फ़राज़ इस लिहाज़ से भी उर्दू के ऐसे खुश नसीब शायर है। जिन्हे दुनिया
भर में मुनअकिद होने वाले शायरी इज्तिमायत में सब से ज़ादा मकबूलियत हासिल हुयी
इस हकीकत से तो यक़ीनन फ़राज़ के मुखालफीन भी इंकार नहीं कर सकते के फी ज़माना फ़राज़ आलमी शोरत और मकबूलियत के
जिस मुकाम पर फ़ाइज़ है वहां दूर दूर तक उनका सनी नज़र नहीं आता
अहमद फ़राज़ की शायरी उर्दू में एक नयी और इंफिरादि आवाज़ की हैसियत रखती है। उनके विजदान और जमालियाती सऊर की एक
ख़ास सख्सियत है। जो निहायत दिल कश खादोंखाल से मिली है।
उनके सोचने का अंदाज़ निहायत हसास और पुर खुलूस है। उनकी शायरी सिर्फ क्लासिक या सिर्फ रूहानी शायरी नहीं कहा जा सकता है।
बक्ले दौरे हाज़िर के लतीफ़ ज़हनी रद्दे अमल का सच्चा नमूना कहा सकता है
Ahmad Faraz Poetry lyrics
सितम का आशना था वो सभी के दिल दुखा गया
के शामे गम तो काट ली सहर हुयी चला गया
हवाएं ज़ालिम सोचती है किस भबर में आ गयी
वो एक दिया भुजा तो सैकड़ो दिए जला गया
सुकूत में भी उस के एक आदये दिल नवाज़ थी
वो यारे कम सुखन कई हिकयते सुना गया
अब एक हुजुमे आसीकां है हर तरफ रबा-दबा
वो एक रह नूर जो खुद को काफला बना गया
दिलों से वो गुज़र गया शुआयें महेर की तरह
घंने उदास जंगलों में रास्ता बना गया
कभी कभी तो यूँ हुआ है इस रियाज़ो बहर में
के एक फूल गुलिस्तां की आबरू बचा गया
शरीके बज़्मे दिल भी है चिराग भी है फूल भी
मगर जो जाने अंजुमन था वप कहा चला गया
उठो सितम ज़दो चले ये दुख कड़ा सही मगर
वो खुश नसीब है ये ज़ख़्म जिसको रास आ गया
ये आंसुओं के हार खु बहा नहीं है दोस्तों
के वो तो जान दे के क़र्ज़े दोस्ताँ निभा गया
Faraz Poetry
फिर तेरे न खबर शाम में आयी
ज़हर अब की तल्ख़ सी मेरे जाम में आयी
ऐ काश न पूरा हो कोई भी मेरा अरमान
और ये तमन्ना दिले न काम में आयी
क्या क्या न ग़ज़ल उसकी जुदायी में कहि है
बर्बादी जान भी तो किसी काम में आयी है
कुछ तेरा सरापा मेरे अशआर में उतरा
कुछ शायरी मेरी तेरे इनाम में आयी है
कब तक ग़मे दौरा मुझे फ़ितरक में रखता
आखिर को तो दुन्याँ भी मेरे दाम में आयी है
कल शाम के था शेखे हरम साहिबे मैफिल
शेबा की परी जमा अहराम में आयी है
हर चंद फ़राज़ एक फकीरे सरे रह हु
पर मुमलकिते हर्फ़ मेरे नाम में आयी है
अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते है
फ़राज़ अब ज़रा लायज़ा बदल कर देखते है
जुदा होना तो मुकद्दर है फिर भी जाने सफर
कुछ और दूर ज़रा साथ चल के देखते है
रहे वफ़ा में हरीफ़े खराम कोई तो हो
सो अपने आप से आगे निकल के देखते है
तू सामने है तो फिर क्यों यकीन नहीं आता
ये बार बार जो आखो को मल के देखते है
ये कौन लोग है मौजूद तेरी मैफिल में
जो लालचों से तुझे, मुझको जल के देखते है
ये क़ुर्ब क्या है,के एकजान हुए न दूर रहे
हज़ार एक ही क़ल्ब में ढल के देखते है
न तुझको मात हुयी है न मुझको मात हुयी
सो अब के दोनों ही चालें बदल कर देखते है
ये कौन है सरे साहिल के डूबने वाले
समन्दरों की तहों से उछाल कर देखते है
अभी तलाक तो न कुंद हुए न राख हुए
हम अपनी आग में हर रोज़ जल कर देखते है
बहुत दिनों से नहीं है कुछ उसकी खबर
चलो फ़राज़ को ए यार चल के देखते है
Ahmad Faraz Most Sad shayari
Ahamad Faraz ka isk
ख्वाबे गुले परेशां अहमद फ़राज़ की किताब से हवाला लिया गया है
जिसमे अहमद फ़राज़ जब हज करने गये तो उनकी मुलाकात एक औरत से हुयी जो मिलने के बाद बहुत खुश हुयी
उसने बोला आप फ़राज़ साहब हो तो फ़राज़ ने कहा है
वो औरत बोली आप रुको मैं अपने अब्बा से आप को मिलबाना चाहती हु वो आप को बहुत याद करते है
जब फ़राज़ की मुलाकात उन बुज़ुर्ग से हुयी वो बहुत खुश हु। उन्होंने कहा की अगर हुस्न बा जमाल और इश्क़ मोहब्बत की आला दर्जे
की शायरी घटिया होती तो ये और ग़ालिब बल्कि दुन्याँ भर के अज़ीम शायरों के यहाँ घटिआ शायरी के अम्बार के सिबा और क्या होता
फ़राज़ की शायरी में पेश तर यक़ीनन हुस्न बा इश्क़ ही की कार फर्माइयाँ है।
और ये वो मौज़ू है। जो इंसानी ज़िन्दगी में से ख़ारिज हो जाये तो, इंसानो के बातिन सहरा में बदल जाये।
मगर फ़राज़ तो भरपूर ज़िन्दगी का शायर है।
वो इंसान के बुननयादी जज़्बों के अलाबा इस आशोब का भी शायर है। जो पूरी इंसानी ज़िन्दगी को मोहित किये हुए है।
उसने जहाँ इंसान की ”महरूमियाँ” मज़लूमातों और सिकिस्त को अपनी नज़म बा ग़ज़ल का मौज़ू बनाया है
वही जुलम बा जबर के अनासिर में टूट टूट कर बरसा है
Ahamad faraz Kalaam,Ghazal
तुम पर भी न हो गुमान मेरा
इतना भी कहाँ न मान मेरा
मैं दिखते हुए दिलों का ईसा
और जिस्म लहू लुहान मेरा
कुछ रोशनी शहर को मिली तो
जलता है जले मकान मेरा
ये ज़ात ये क़ायनात क्या है
तू जान मेरी जहां मेरा
तू आया तो कब पलट के आया
जब टूट चूका था मान मेरा
जो कुछ भी हुआ एहि बहुत है
तुझको को भी रहा है ध्यान मेरा
Faraz Most Sad shayari
तवाफ़े मंज़िले जाना हमें भी करना है
फ़राज़ तुम भी अगर थोड़ी दूर मेरे साथ चलो
देखो ये मेरे ख्याब थे, देखो ये मेरे ज़ख़्म है
मैंने तो सब हिसाब जान बर-सरे आम रख दिया
चमन में नगमा सरायी के बाद याद आये
क़फ़स के दोस्त रिहाई के बाद याद आये
वो जिन को हम तेरी क़ुरबत में भूल बैठे थे
वो लोग तेरी जुदाई के बाद याद आये
हरिमे नाज़ की खैरात बाँटने वाले
हर एक दर की गदायी के बाद याद आये
बदन में आग है, चेहरा गुलाब जैसा है
के ज़हर-ए-गम का नशा, शराब जैसा है
वो सामने है मगर तिशनगी नहीं जाती
ये क्या सितम है, के दरया शराब जैसा है
कहा वो क़ुर्ब के अब तो ये हाल है जैसे
तेरे फ़िराक़ का आलम भी ख्याब जैसा है
मगर कभी कोई देखे कोई पड़े तो सही
दिल आईना है, तो चेहरा गुलाब जैसा है
बाहारे खु से चमन ज़ार बन गए मकतल
जो नखले दार है, शाखे गुलाब जैसा है
फ़राज़ संगे मलामत से ज़ख़्म ज़ख़्म सही
हमही अज़ीज़ है, खाना ख़राब जैसा है
अहमद फ़राज़ की शायरी में आप को दर्द और मोहब्बत दोनों ही देखने को मिलते है फ़राज़ का एक शेयर याद आता ह।
जिसमे मोहबत का अंदाज़ आप को नज़र आएंगे
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते है सो उसके शहर में कुछ दी ठहर के देखते है ”
रंजिश ही सही दिल दुखने के लिए आ आ फिर से मुझे छोड़ जाने के लिए आ
फ़राज़ ने इस में अपने आप को फ़ना कर लिया और हर सितम को अपने लिए उठाया जिसमे दर्द का एहसास नज़र आता है
की कुछ भी सही मगर तू आ तो सही
फ़राज़ का इश्क कमाल का इश्क है फ़राज़ जिस तरहे से इश्क को बताते है शायद किसी ने बताया हो जिसमे विशाल और फ़िराक दो शामिल है
आप बयां करते है की
आशिकी में मीर जैसा ख़्वाब मत देखा करो पागल हो जायो गे महताब मत देखा करो
फ़राज़ अपने वक्त के ग़ालिब हुए है वैसे उनको क्रिकेट का भी शोक था
Ahmad Faraz Hindi Ghazal
Ahmad Faraz Shayari
तड़प उठूं भी तो ज़ालिम तेरी दोहाई न दू
मैं ज़ख़्म ज़ख़्म हु फिर भी तुझे दुहाई न दू
तेरे बदन में धरकने लगा हु दिल की तरहे
ये और बात है के अब भी तुझे सुनाई न दू
खुद अपने आप को परखा तो ये नदामत है
के अब कभी उसे इल्ज़ाम बे वफाई न दू
मेरी वका ही मेरी खुवाईश ए गुन्हा में है
मैं ज़िन्दगी को भी ज़हर पार साई न दू
जो ठन गयी है तो यारी पे हर्फ़ क्यों आये
हरीफ़े जान को भी ताने आशनाई न दू
मुझे भी ढूंढ कभी माहबे आईना दारी
मैं तेरा अक्स हु लेकिन तुझे दिखाई न दू
ये हौसला भी बड़ी बात है शिकस्त के बाद
के दुसरो को तो इल्ज़ाम नार साई न दू
फ़राज़ दौलते दिल है मताये महरूमी
मैं जामे जम के हौज़ कासा गदाई न दू
अपनी ही आवाज़ को बे-शक कान में रखना
लेकिन शहर की खामोशी भी धियान में रखना
मेरे झूट को खोलो भी और तोलो भी तुम
लेकिन अपने सच को भी मीज़ान में रखना
कल तारिख यक़ीनन खुद को धो-राएगी
आज के एक एक मंज़र को पैचान में रखना
बज़म में यारों की शमसीर लहू में तर है
रम्ज़ में लेकिन तलबारो को मियान में रखना
आज तो ए दिल तरके-ताल्लुक पर तुम खुश हो
कल के पछताबे को भी इमकान में रखना
इस दरया के आगे एक समंदर भी है
और वो बे साहिल है ये भी धयान में रखना
इस मौसम में गुलदानों की रसम कहा है
लोगो अब फूलों को आतिस दान में रखना
अहमद फ़राज़ का जन्म कोहाट (तब ब्रिटिश भारत) में सैयद मुहम्मद शाह बरक़ के यहाँ हुआ था।
उनके भाई सैयद मसूद कौसर हैं। वह अपने परिवार के साथ पेशावर चले गए। उन्होंने प्रसिद्ध एडवर्ड्स कॉलेज, पेशावर में अध्ययन किया
और पेशावर विश्वविद्यालय से उर्दू और फ़ारसी में परास्नातक प्राप्त किया। अपने कॉलेज जीवन के दौरान, प्रगतिशील कवि फैज अहमद फैज और अली सरदार जाफरी उनके सबसे अच्छे दोस्त थे,
जिन्होंने उन्हें प्रभावित किया और उनके आदर्श बन गए। जातीय रूप से एक पश्तून सैयद, अहमद फ़राज़ ने पेशावर विश्वविद्यालय में फ़ारसी और उर्दू का अध्ययन किया।
बाद में वे पेशावर विश्वविद्यालय में व्याख्याता बने।
Ahmad Faraz Ghazal hindi
अहमद फ़राज़ एक पाकिस्तानी उर्दू कवि थे।
उन्हें पिछली शताब्दी के सर्वश्रेष्ठ आधुनिक उर्दू कवियों में से एक के रूप में प्रशंसित किया गया था।
‘फ़राज़’ उनका कलम नाम है। 25 अगस्त 2008 को इस्लामाबाद में उनका निधन हो गया।
उन्हें पाकिस्तान सरकार द्वारा हिलाल-ए-इम्तियाज, सितारा-ए-इम्तियाज और उनकी मृत्यु के बाद हिलाल-ए-पाकिस्तान से सम्मानित किया गया।
Ahmad Faraz shayri ghazal
गिरफ्ता दिल अंदलीप घायल गुलाब देखे
मोहब्बतों ने सभी लम्हो में अज़ाब देखे
वो दिन भी आये सलीब गर भी सलीब पर हूँ
ये शहर एक रोज़ फिर से योमे हिसाब देखे
ये सुबहेका ज़ेब तो रात से भी तबील तर है
के जैसे सदयाँ गुज़र गयी आफ़ताब देखे
वो चश्मे महरूम कितनी महरूम है के जिस ने
न खुआब देखे न रत-जगो के अज़ाब देखे
कहाँ की आँखे के अब तो चेरो पे आबले है
और आब्लो से भला कोई कैसे खुआब देखे
अजब नहीं है जो खुश्बुओं से है शहर ख़ाली
के मैंने दहलीज़ क़ातिल पर गुलाब देखे
ये सा-आते दीद और बये-सत बढ़ा गयी है
जैसे कोई जुनु ज़दा महताब देखे
मुझे तो हम मकतबी के दिन आ गए है
के मैं उसे पड़ रहा हु और वो किताब देखे
धोके खता रहा बार बार अदू से
फिर भी करता रहा ऐतबार अदू से
घूमता फिरता है ज़हन बा दिल में लिए
मसले ज़िन्दगी के हज़ार दुश्मन से
अपने मतलम की खातिर मेरे आप के
डालता है दिल-लो में दरार अपनों से
कोई आता नहीं मुद्दतों तक यहाँ
किस का करता है ये इन्तिज़ार अदू से
मसले रंज-बा-गम जाल फैलाए है
होता रहता है हर दम शिकार रकीब से
ठोकरे ज़ख़्म पर ज़ख़्म खाता रहा
चाहता है मगर इक्तिदार अदू से
इत्तिफाकन ही तुमको मिले तो मिले
सख्सियत से बहुत बा बेकार अदू से
बे-बसी मुफलिसी तंग-दस्ती का है
चलता फिरता इस्तिहार अदू से
भूल होती है सरज़द कभी न कभी
चाहे कितना ही हो होशयार अदू से
न-तबं ज़र्द चेरो पे अंजुम थकन
जिस तरफ देखिए बे-करार अदू से
अदू को दुश्मन या रकीब भी कहते है, अदू का कोई रूप नहीं है ,जिसे हम सब कुछ समझते है वही मेरा दुश्मन निकलता है
अदू को पैचान करना बहुत मुश्किल काम है आज के वक्त में
एसे लोग हर दौर में रहे है और आज भी है, हमें जिस के ऊपर सब से ज़ादा भरोसा होता है वही अपना दुश्मन निकलता है,
ज़िन्दगी के हर मुकाम पर अगर आप के साथ कोई अपना होगा तो साथ में आप का कोई रकीब भी होगा
एसे लोगो से न तो कोई आज तक बच पाया है न ही बच पायेगा, इनके बात करने का अंदाज़ इनकी हमदर्दी एसी होती है
की बहुत अच्छे या बहुत होशयार लोग भी धोका खा जाते है, एसे लोग हमेसा अपने मतलब के लिए ही मिलते है, जब इनका
काम हो जाता है, तो ये बहुत आसानी से आप को धोका दे कर चले जाते है
और आप खामोश हो जाते है किसी शायर ने इनकी फितरत से मिलते जुलते कुछ शेयर लिखे है, जो मुझको याद आते है
अदू की बे-वफाई पे वो शायद कुछ यूँ है की
Shayari Adoo hindi
अब कहाँ उनका हसीं साथ चलो सो जाये
फीकी फीकी है हर एक रात चलो सो जाये
मुन्तक़िल कर दे दिल-औ ज़हन कहीं और अपने
जान ले-लेना ये सदमात चलो सो जाये
हिजर की शब् तो यूँ ही जागते गुज़री सारी
अब सहर से है मुलाकात चलो सो जाये
इस में शायर अपने ख्याल को हसीन अंदाज़ में बयां कर रहा है
Adoo Shayari
मोहब्बत की रह में भी रकीब आखरी हद तक कोई कसर नहीं रखता है, जब तक के वो दो दिलो को अलग न कर ले
हज़ार ऐब लगता है न जाने कितने फ़ितने फैलता है
कभी ज़ात का मसला कभी दौलत का, कभी समाज का कभी किसी का कभी का जहाँ पर प्यार होता है ये नफरत का बीज बोता
है लेकिन अफसोस की आज तक हम लोग एसे लोगो से अलग नहीं हो प् रहे है समज नहीं आता किस पे यकीन करे
मौसमे गुल में भी अब सोये सोये रहते है
अब कहा यार वो जज़्बात चलो सो जाये
अब कोई और भरम अपना रहा न क़ायम
खा चुके उन से भी अब मात चलो सो जाये
हुकुमरानी जहाँ फुलू की रहा करती थी
आज काँटों की है बरात चलो सो जाये
कर रहे है मुझे ज़ादा ही परेशान हर पल
ज़िन्दगी अब तेरे खाद-शात चलो सो जाये
अबर-आलूद फ़ज़ा हो गयी सा-फाफ अंजुम
हो चुकी आँखों से बरसात चलो सो जाये