Allama Iqbal Urdu Poetry इक़बाल की शुरुआती कविताओं में जो राष्ट्रवाद दिखता है वो धीरे-धीरे बदलने लगता है.जर्मन दार्शनिक नीत्शे, फ़्रांस के दार्शनिक बर्गसन और जर्मनी के मार्क्स के प्रभाव में इक़बाल की शायरी में एक नया बदलाव आया.
ज़माना आया है बे-हिजाबी का आम दीदार-ए-यार होगा
सुकूत था पर्दा-दार जिस का वो राज़ अब आश्कार होगा
गुज़र गया अब वो दौर साक़ी कि छुप के पीते थे पीने वाले
बनेगा सारा जहान मय-ख़ाना हर कोई बादा-ख़्वार होगा
कभी जो आवारा-ए-जुनूँ थे वो बस्तियों में आ बसेंगे
बरहना-पाई वही रहेगी मगर नया ख़ार-ज़ार होगा
तुम्हारी तहज़ीब अपने ख़ंजर से आप ही ख़ुद-कुशी करेगी
जो शाख़-ए-नाज़ुक पे आशियाना बनेगा ना-पाएदार होगा
Allama Iqbal Urdu Poetry अलामा मुहम्मद इकबाल को सरकारी स्कूल लाहौर में उनके दर्शन शिक्षक सर थॉमस अर्नाल्ड के सबक से प्रभावित किया गया था। अर्नोल्ड के सबक ने इकबाल को पश्चिम में उन्नत शिक्षा की तलाश करने का फैसला किया, और 1905 में, वह उस कारण से इंग्लैंड गए।
सफ़ीना-ए-बर्ग-ए-गुल बना लेगा क़ाफ़िला मोर-ए-ना-तावाँ का
हज़ार मौजों की हो कशाकश मगर ये दरिया से पार होगा
चमन में लाला दिखाता फिरता है दाग़ अपना कली कली को
ये जानता है कि इस दिखावे से दिल जलों में शुमार होगा
जो एक था ऐ निगाह तू ने हज़ार कर के हमें दिखाया
यही अगर कैफ़ियत है तेरी तो फिर किसे ए’तिबार होगा
मोहम्मद इक़बाल अविभाजित भारत के प्रसिद्ध कवि, नेता और दार्शनिक थे। उर्दू और फ़ारसी में इनकी शायरी को आधुनिक काल की सर्वश्रेष्ठ शायरी में गिना जाता है।
नहीं है ग़ैर अज़ नुमूद कुछ भी जो मुद्दआ तेरी ज़िंदगी का
तू इक नफ़स में जहाँ से मिटना तुझे मिसाल शरार होगा
न पूछ इक़बाल का ठिकाना अभी वही कैफ़ियत है उस की
कहीं सर-ए-राहगुज़ार बैठा सितम-कश इंतिज़ार होगा