Allama Iqbal Hindi Shayari अपनी शुरुआती कविताओं में इक़बाल अखंड और स्वतंत्र भारत की बात किया करते थे, जहाँ हिंदू और मुसलमान साथ-साथ रह सकेंगे, लेकिन भाईचारे और बहुलवाद का ये विश्वास जल्द ही एकेश्वरवाद और व्यक्तिवाद में बदलने लगा.
दिल-ए-बेदार फ़ारूक़ी दिल-ए-बेदार कर्रारी
मिस-ए-आदम के हक़ में कीमिया है दिल की बेदारी
दिल-ए-बेदार पैदा कर कि दिल ख़्वाबीदा है जब तक
न तेरी ज़र्ब है कारी न मेरी ज़र्ब है कारी
मशाम-ए-तेज़ से मिलता है सहरा में निशाँ उस का
ज़न ओ तख़मीं से हाथ आता नहीं आहू-ए-तातारी
इस अंदेशे से ज़ब्त-ए-आह मैं करता रहूँ कब तक
कि मुग़-ज़ादे न ले जाएँ तिरी क़िस्मत की चिंगारी
इक़बाल ने हिन्दोस्तान की आज़ादी से पहले “तराना-ए-हिन्द” लिखा था, Allama Iqbal Hindi Shayari जिसके प्रारंभिक बोल- “सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा” कुछ इस तरह से थे। उस समय वो इस सामूहिक देशभक्ति गीत से अविभाजित हिंदुस्तान के लोगों को एक रहने की नसीहत देते थे
ख़ुदावंदा ये तेरे सादा-दिल बंदे किधर जाएँ
कि दरवेशी भी अय्यारी है सुल्तानी भी अय्यारी
मुझे तहज़ीब-ए-हाज़िर ने अता की है वो आज़ादी
कि ज़ाहिर में तो आज़ादी है बातिन में गिरफ़्तारी
तू ऐ मौला-ए-यसरिब आप मेरी चारासाज़ी कर
मिरी दानिश है अफ़रंगी मिरा ईमाँ है ज़ुन्नारी