Sheikh Saadi


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पैदाइश 1210
शिराज़ इरान
वफ़ात 1291 or 1292
शिराज़
धार्मिक मान्यता इस्लाम

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शेख सादी (शेख मुसलिदुद्दीन सादी), 13वीं शताब्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार। ईरान के दक्षिणी प्रांत में स्थित शीराज नगर में 1185 या 1186 में पैदा हुए थे। उसकी प्रारंभिक शिक्षा शीराज़ में ही हुई। बाद में उच्च शिक्षा के लिए उसने बगदाद के निज़ामिया कालेज में प्रवेश किया। अध्ययन समाप्त होने पर उसने इसलामी दुनिया के कई भागों की लंबी यात्रा पर प्रस्थान किया – अरब, सीरिया, तुर्की, मिस्र, मोरक्को, मध्य एशिया और संभवत: भारत भी, जहाँ उसने सोमनाथ का प्रसिद्ध मंदिर देखने की चर्चा की है।

अपनी रचना बोस्ताँ और गुलिस्तां के लिए प्रसिद्ध| इन्होंने कई देशों का भ्रमण किया जिनमे अरब, उत्तरी अफ्रीका, एशिया माइनर, सीरिया और हिंदुस्तान प्रमुख है| सिंध पहुंचने पर कई आला दर्ज़े के सूफ़ियों से इनकी मुलाक़ात भी हुई| बग़दाद में इनकी मुलाक़ात शेख़ शहाबुद्दीन सुहरावर्दी से हुई| इन्होने मुख्तलिफ़ विषयों पर कवितायेँ कही| ब्राउन ने इनके विषय में लिखा है – ये असाधारण है कि जहाँ कहीं भी फ़ारसी का अध्ययन किया जाता है, पढ़ने वाले के हाथ में सबसे पहले इनकी किताब ही आती है और यह बात लगभग डेढ़ सौ सालों से चली आ रही है .प्रमुख रचनायें-
१. गुलिस्तां
२. बोस्ताँ
३.दीवान
४. अख़लाक़ी नासीन

गुलिस्ताँ का प्रणयन सन्‌ 1258 में पूरा हुआ। यह मुख्य रूप से गद्य में लिखी हुई उपदेशप्रधान रचना है जिसमें बीच बीच में सुंदर पद्य और दिलचस्प कथाएँ दी गई हैं। यह आठ अध्यायों में विभक्त है जिनमें अलग अलग विषय वर्णित हैं; उदाहरण के लिए एक में प्रेम और यौवन का विवेचन है। ‘गुलिस्ताँ’ ने प्रकाशन के बाद से अद्वितीय लोकप्रियता प्राप्त की। वह कई भाषाओं में अनूदित हो चुकी है – लैटिन, फ्रेंच, अंग्रेजी, तुर्की, हिंदुस्तानी आदि। अनेक परवर्ती लेखकों ने उसका प्रतिरूप प्रस्तुत करने का प्रयास किया, किंतु उसकी श्रेष्ठता तक पहुँचने में वे असफल रहे। ऐसी प्रतिरूप रचनाओं में से दो के नाम हैं – बहारिस्ताँ तथा निगारिस्ताँ।

बोस्ताँ की रचना एक वर्ष पहले (1257 में) हो चुकी थी। सादी ने उसे अपने शाही संरक्षक अतालीक को समर्पित किया था। गुलिस्ताँ की तरह इसमें भी शिक्षा और उपदेश की प्रधानता है। इसके दस अनुभाग है। प्रत्येक में मनोरंजक कथाएँ हैं जिनमें किसी न किसी व्यावहारिक बात या शिक्षा पर बल दिया गया है। एक और पुस्तक पंदनामा (या करीमा) भी उनकी लिखी बताई जाती है किंतु इसकी सत्यता में संदेह है। सादी उत्कृष्ट गीतिकार भी थे और हाफिज के आविर्भाव के पहले तक वे गीतिकाव्य के महान्‌ रचयिता माने जाते थे। अपनी कविताओं के कई संग्रह वे छोड़ गए हैं।