Bu Ali Shah Qalandar


bualishah
नाम: बू-अली-शाह कलंदर
पैदाइश: 1209 ई.
वफ़ात: 1324 ई.

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कलंदर शाह का असली नाम शेख शर्राफुद्दीन था। उनके पिता शेख फख़रुद्दीन अपने समय के एक महान संत और विद्वान थे। कलंदर शाह 1190 ई. में पैदा हुए और 122 साल की उम्र में 1312 ई. में उसका निधन हो गया था। कलंदर शाह के जीवन के शुरुआत के 20 साल दिल्ली में कुतुबमीनार के पास गुजरे। उसके बाद वे पानीपत आ गए। कुछ लोगों का कहना है कि वे इराक से आए थे और पानीपत में बस गए।

मन्नत मांगने वाले लगाते हैं ताला

कलंदर शाह की दरगाह पर बड़ी संख्या में लोग मन्नत मांगने आते हैं। मन्नत मांगने वाले लोग दरगाह के बगल में एक ताला लगा जाते हैं। कई बार इस ताले के साथ लोग खत लिख कर भी लगाते हैं। दरगाह के बगल में हजारों ताले लगे देखे जा सकते हैं। वैसे कलंदर शाह की दरगाह पर हर रोज श्रद्धालु उमड़ते हैं। पर हर गुरुवार को दरगाह पर अकीदतमंदों की भारी भीड़ उमड़ती है।

कलंदर शाह का यह मकबरा पानीपत में कलंदर चौक पर स्थित है जो उसी के नाम पर है। इस मकबरे के मेन गेट के दाहिनी तरफ प्रसिद्ध उर्दू शायर ख्वाजा अल्ताफ हुसैन हाली पानीपती की कब्र भी है। सभी समुदायों के लोग हर गुरुवार को प्रार्थना करने और आशीर्वाद लेने के लिए यहां आते हैं।

दिल्‍ली से फैली शोहरत की खुश्‍बू

उस समय दिल्ली के शासकों की अदालत कुतुबमीनार के पास लगती थी। कलंदर शाह उसकी मशविरा कमेटी में प्रमुख थे। इस्लामी कानून पर लिखी उनकी किताबें आज भी इंडोनेशिया, मलेशिया व अन्य मुस्लिम देशों में पढ़ाई जाती हैं। वे सूफी संत ख्वाजा कुतुबद्दीन बख्तियार काकी के शिष्य थे। उन्हें नूमान इब्न सबित और प्रसिद्ध विद्वान इमाम अबू हनीफा का वंशज माना जाता है। उन्होंने पारसी काव्य संग्रह भी लिखा, जिसका नाम दीवान ए हजरत शरफुद्दीन बू अली शाह कलंदर है।

दमादम मस्त कलंदर 

कलंदर का अर्थ है वह व्यक्ति, जो दिव्य आनंद में इतनी गहराई तक डूब चुका है कि अपनी सांसारिक संपत्ति और यहां तक कि अपनी मौजूदगी के बारे में भी परवाह नहीं करता। हजरत मकदूम साहब सोसायटी के इरफान अली बताते हैं कि कलंदर शाह महान सूफी संत और धार्मिक शिक्षक थे। उन्होंने हर तरह के भेदभाव का विरोध किया। उनके अनुयायियों में सभी धर्मों के लोग हैं। दुनियाभर से पूरे साल यहां आने वालों का तांता लगा रहता है। इनमें सबसे ज्यादा संख्या दक्षिण अफ्रीका से आने वालों की है।