Khwaja Bandanwaz Gesudraz


Bandanwaz-Gesudraz
पैदाइश 7 अगस्त 1321
दिल्ली, दिल्ली सल्तनत
वफ़ात 10 नवंबर 1422 (आयु वर्ग 101)
जातीयता भारतीय
युग इस्लामी स्वर्णयुग
धर्म इस्लाम
न्यायशास्र सुन्नी इस्लाम
मुख्य रूचि सूफ़ीवाद

E-Book

Coming Soon 

सय्यद वल शरीफ़ कमालुद्दीन बिन मुहम्मद बिन यूसुफ़ अल हुसैनी : जिन्हें आम तौर पर ख्वाजा बन्दा नवाज़ गेसू दराज़ कहते हैं। ( 7 अगस्त 1321, दिल्ली -10 नवंबर 1422, गुलबर्गा ) बंदा नवाज़ या गेसू दराज़ के नाम से जाना जाता है, चिश्ती तरीक़े के भारत से एक प्रसिद्ध सूफी संत थे, जिन्होंने समझ, सहिष्णुता की वकालत की, विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच सद्भावना पैदा की।

गेसू दराज़ दिल्ली के प्रसिद्ध सूफ़ी संत हज़रत नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी के एक मुरीद या शिष्य थे। चिराग देहलावी की मृत्यु के बाद, गेसू दराज़ ने उत्तराधिकारी (ख़लीफ़ा) के तौर पर गद्दा नशीन हुवे। जब वह दिल्ली पर तैमूर लंग के हमले के कारण 1400 के आस-पास दौलाबाद में चले गए, तो उन्होंने चिश्ती तरीके को दक्षिण भारत में परिचय किया और स्थापित भी। अंत में वह बहामनी सुल्तान, ताज उद-दीन फिरोज शाह के निमंत्रण पर गुलबर्गा में बस गए।

उनके नाम के साथ अबुल-फतह और गेसू दराज़ उनका खिताब था। विद्वानों और धर्मविदों में से वह शेख अबुल-फतह सदर उदीन मुहम्मद देहलावी थे, लेकिन लोगों ने उन्हें ख्वाजा बंदा नवाज़ गेसू दराज़ कहा।

वह हजरत अली के वंशज थे। उनके पूर्वज हेरात में रहते थे। उनमें से एक दिल्ली आये और यहां बस गए। उनके पिता हजरत सय्यद वल शरीफ़ मुहम्मद बिन यूसुफ़ का जन्म 4, रजब, 721 हिजरी में हुआ था। उनके पिता हजरत सैयद वल शरीफ़ यूसुफ बिन मुहम्मद अल हुसैनी एक पवित्र व्यक्ति थे और हजरत निज़ामुद्दीन औलिया को समर्पित थे।