मेरी जान हो जिगर हो दिल हो क्या बतलाओ क्या तुम हो
बशर हो या खुदा हो कौन हो बतलाओ क्या तुम हो
मेरे दिल से कोई पूछे के कैसे दिलरुबा तुम हो
हसीन हो माह-ए-रु हो और सर्तपा आता तुम हो
मेरा मारना है के बेजा क्यू के पक्के पारसा तुम हो
कसम खाओ नही हरगिज़ किसी पे मुब्तेला तुम हो
जफ़ा’न पे नाज़ पे ग़मज़ा पे शौकी’न पे शरारत पे
मेरा दिल जिसकी हर क़ाफ़िर अदा पे आ गया तुम हो
तुम्हारा ही मैं बंदा हूँ तुम्ही पर जान देता हूँ
ना कोई दिलरुबा मेरा अगर हो आशना तुम हो
तुम्हारे देखने से दर्द-ए-दिल तस्कीन पाता है
यक़ीनन अपने बीमार-ए-मोहब्बत की दवा तुम हो
तुम्हे क़त्ल की ख्वाहिश मुझे है शौक मरने का
हिला दो खंजर-ए-आबरू अगर मुझसे खफा तुम हो
समझ के राम को अल्लाह बिस्मिल मिट गये उस पे
दागाह बाज़ो के क़िब्ला-गाह हो या परसा तुम हो
कलाम-ए-बिस्मिल
~ हज़रत सूफ़ी मोहॅमेड इफ़्तेखार उल हक़
सिडईक्वी मुजीबी रहमानी रज़्ज़क़ी क़ाद्री चिश्ती नक़्शबंदी सोहारवर्दी मुजद्डिडी नईमी