फिर दिल में मेरे आई याद शाह-ए-जिलानी
फिरने लगी आंखें में वो सुरत-ए-नूरानी
मकसूद-ए-मुरीदाँ हो ऐ मुर्शिद-ए-ला-सानी
तुम क़िबला-ए-दिनी हो तुम काबा-ए-इमानी
हसनैन के सदक़े में अब मेरी ख़बर लीजिए
मुद्दत से हूँ ऐ मौला मैं वक़्फ़-ए-परेशानी
ऐ दस्त-ए-करम ही कुछ खोले तो गिरह खोले
आसानी में मुश्किल है मुश्किल में है आसानी
शाहों से भी अच्छा हूँ क्या जाने क्या क्या हूँ
हाथ आई है क़िस्मत से दर की तिरे दरबानी
सोते हैं पड़े सुख से आज़ाद हैं हर दुख से
बंदों को तिरे मौला ग़म है न परेशानी
‘बेदम’ ही नहीं ऐ जाँ तन्हा तेरा सौदाई
आ’लम तिरा शैदा है दुनिया तिरी दीवानी