Bo Ajab Ghadi Thi

वो अजब घड़ी थी मैं जिस घड़ी लिया दर्स नुस्ख़ा-ए-इश्क़ का
कि किताब अक़्ल की ताक़ पर जूँ धरी थी त्यूँ ही धरी रही

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Hamara Azme Safar kab kidhar ka ho jaye

हमारा अज्म़ -ए – सफ़र कब किधर का हो जाये
यह वो नहीं जो किसी रहगुज़र का हो जाये

खुली हवाओं में उड़ना तो उसकी फ़ितरत है
परिन्दा क्यों किसी शाख़ – ए – शजर का हो जाये

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