Azal ke din jinhe le kar chale the teri mahfil se

अज़ल के दिन जिन्हे ले कर चले थे तेरी महफ़िल से
वो शोला आज तक लिपटे हुआ है दामाने दिल से

मुझे अब खोफ ही क्या हिजर में तन्हाई दिल से
हज़ारो महफिले ले कर उठा हु तेरी महफ़िल से

ये आलम है हुजुमे शोक में बे ताबी दिल से
के मंज़िल पर पहुंच कर भी उडा जाता हु मंज़िल से

फलक पर दुबे जाते है तारे भी शबे फुरकत
मगर निस्बत कहा उनको मेरे दुबे हुए दिल से

निगाहे कैस की उठी है जोशे कैफ मस्ती में
ज़रा होशयार रहना सारबा लैला की मैफिल में

समझ कर फूकना उस को ज़रा ए दागे न कामी
बहुत से घर भी है आबाद उस उजड़े हुए दिल में

मोहब्बत में कदम रखते ही गुम होना पड़ा मुझको
निकल आये हज़ारो मंज़िले एक ही मंज़िल से

क़यामत क्या,कहाँ का हश्र,क्या दैर,क्या काबा
ये सब हंगामा बरपा है, मेरे एक मुज़्तरिब दिल

बयां क्या हो यहाँ की मुस्किले बस मुक्तसर ये है
वही अच्छे है, कुछ जो जिस कदर है दूर मंज़िल से

हुजुमे यास एसा कुछ नज़र नहीं मुझको
बाफुरे शौक़ में आगे बढ़ा जाता हु मंज़िल से

मोहब्बत में ज़रूरत ही तलाशे गैर की क्या थी
अगर हम ढूंढ़ते नस्तर भी मिल जाता रगे गुल से

बदन से जान भी हो जाएगी रुखसत जिगर लेकिन
न जायेगा ख़याले हज़रते असगर मेरे दिल से