अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते है
फ़राज़ अब ज़रा लायज़ा बदल कर देखते है
जुदा होना तो मुकद्दर है फिर भी जाने सफर
कुछ और दूर ज़रा साथ चल के देखते है
रहे वफ़ा में हरीफ़े खराम कोई तो हो
सो अपने आप से आगे निकल के देखते है
तू सामने है तो फिर क्यों यकीन नहीं आता
ये बार बार जो आखो को मल के देखते है
ये कौन लोग है मौजूद तेरी मैफिल में
जो लालचों से तुझे, मुझको जल के देखते है
ये क़ुर्ब क्या है,के एकजान हुए न दूर रहे
हज़ार एक ही क़ल्ब में ढल के देखते है
न तुझको मात हुयी है न मुझको मात हुयी
सो अब के दोनों ही चालें बदल कर देखते है
ये कौन है सरे साहिल के डूबने वाले
समन्दरों की तहों से उछाल कर देखते है
अभी तलाक तो न कुंद हुए न राख हुए
हम अपनी आग में हर रोज़ जल कर देखते है
बहुत दिनों से नहीं है कुछ उसकी खबर
चलो फ़राज़ को ए यार चल के देखते है

Ahamad Faraz ka isk
ख्वाबे गुले परेशां अहमद फ़राज़ की किताब से हवाला लिया गया है
जिसमे अहमद फ़राज़ जब हज करने गये तो उनकी मुलाकात एक औरत से हुयी जो मिलने के बाद बहुत खुश हुयी
उसने बोला आप फ़राज़ साहब हो तो फ़राज़ ने कहा है
वो औरत बोली आप रुको मैं अपने अब्बा से आप को मिलबाना चाहती हु वो आप को बहुत याद करते है
जब फ़राज़ की मुलाकात उन बुज़ुर्ग से हुयी वो बहुत खुश हु। उन्होंने कहा की अगर हुस्न बा जमाल और इश्क़ मोहब्बत की आला दर्जे
की शायरी घटिया होती तो ये और ग़ालिब बल्कि दुन्याँ भर के अज़ीम शायरों के यहाँ घटिआ शायरी के अम्बार के सिबा और क्या होता
फ़राज़ की शायरी में पेश तर यक़ीनन हुस्न बा इश्क़ ही की कार फर्माइयाँ है।
और ये वो मौज़ू है। जो इंसानी ज़िन्दगी में से ख़ारिज हो जाये तो, इंसानो के बातिन सहरा में बदल जाये।
मगर फ़राज़ तो भरपूर ज़िन्दगी का शायर है।
वो इंसान के बुननयादी जज़्बों के अलाबा इस आशोब का भी शायर है। जो पूरी इंसानी ज़िन्दगी को मोहित किये हुए है।
उसने जहाँ इंसान की ”महरूमियाँ” मज़लूमातों और सिकिस्त को अपनी नज़म बा ग़ज़ल का मौज़ू बनाया है
वही जुलम बा जबर के अनासिर में टूट टूट कर बरसा है
Ahamad faraz Kalaam,Ghazal
तुम पर भी न हो गुमान मेरा
इतना भी कहाँ न मान मेरा
मैं दिखते हुए दिलों का ईसा
और जिस्म लहू लुहान मेरा
कुछ रोशनी शहर को मिली तो
जलता है जले मकान मेरा
ये ज़ात ये क़ायनात क्या है
तू जान मेरी जहां मेरा
तू आया तो कब पलट के आया
जब टूट चूका था मान मेरा
जो कुछ भी हुआ एहि बहुत है
तुझको को भी रहा है ध्यान मेरा
Faraz Most Sad shayari
तवाफ़े मंज़िले जाना हमें भी करना है
फ़राज़ तुम भी अगर थोड़ी दूर मेरे साथ चलो
देखो ये मेरे ख्याब थे, देखो ये मेरे ज़ख़्म है
मैंने तो सब हिसाब जान बर-सरे आम रख दिया
चमन में नगमा सरायी के बाद याद आये
क़फ़स के दोस्त रिहाई के बाद याद आये
वो जिन को हम तेरी क़ुरबत में भूल बैठे थे
वो लोग तेरी जुदाई के बाद याद आये
हरिमे नाज़ की खैरात बाँटने वाले
हर एक दर की गदायी के बाद याद आये