अब के रुत बदली तो खुशबू का सफर देखेगा कौन
ज़ख़्म फूलो की तरह महकेंगे, पर देखे गा कौन।
देखना सब रक्से बिस्मिल में मगन हो जायेगे
जिस तरफ से तीर आएगा, उधर देखे गा कौन।
ज़ख़्म जितने भी थे सब मंसूब क़ातिल से हुए
तेरे हाथो ने निसान ऐ चारा गर देखे गा कौन।
वो होश हो या वफ़ा हो बात महरूमी की है
लोग तो फल फूल देखे गे शजर देखे गा कौन।
मेरी आवाज़ों के साये मेरे वाम बा दर पे है
मेरे लफ़्ज़ों में उतर कर मेरा घर देखेगा कौन।
हम चिरागे शब् ही जब ठहरे तो फिर क्या सोचना
रात थी किस का मुक्कदर और सहर देखेगा कौन।
हर कोई अपनी हवा में मस्त फिरता है फ़राज़
सहेरे न पुरसँ में तेरी चश्मे तर देखेगा कौन।

Ahmad Faraz ki tareef
उर्दू शायरी वाली, मीर, ग़ालिब, इकबाल,जोश, जिगर, फ़िराक, और फैज़ के खयालो से मराहिल तय करती हुयी
अहदी नू में अहमद फ़राज़ तक पहुंची। तो क़बूले आम की तमाम सरहदों को पार कर गयी
अहमद फ़राज़ की कसीरुल-हाजात और हमा-रंग शायरी बिला-शुबा उर्दू के शायरी अदब का नुक़्तए उरूज है
और इस अहेद का मुक़्क़मल मंज़र नामा भी। अहमद फ़राज़ इस लिहाज़ से भी उर्दू के ऐसे खुश नसीब शायर है। जिन्हे दुनिया
भर में मुनअकिद होने वाले शायरी इज्तिमायत में सब से ज़ादा मकबूलियत हासिल हुयी
इस हकीकत से तो यक़ीनन फ़राज़ के मुखालफीन भी इंकार नहीं कर सकते के फी ज़माना फ़राज़ आलमी शोरत और मकबूलियत के
जिस मुकाम पर फ़ाइज़ है वहां दूर दूर तक उनका सनी नज़र नहीं आता
अहमद फ़राज़ की शायरी उर्दू में एक नयी और इंफिरादि आवाज़ की हैसियत रखती है। उनके विजदान और जमालियाती सऊर की एक
ख़ास सख्सियत है। जो निहायत दिल कश खादोंखाल से मिली है।
उनके सोचने का अंदाज़ निहायत हसास और पुर खुलूस है। उनकी शायरी सिर्फ क्लासिक या सिर्फ रूहानी शायरी नहीं कहा जा सकता है।
बक्ले दौरे हाज़िर के लतीफ़ ज़हनी रद्दे अमल का सच्चा नमूना कहा सकता है
Ahmad Faraz Poetry lyrics
सितम का आशना था वो सभी के दिल दुखा गया
के शामे गम तो काट ली सहर हुयी चला गया
हवाएं ज़ालिम सोचती है किस भबर में आ गयी
वो एक दिया भुजा तो सैकड़ो दिए जला गया
सुकूत में भी उस के एक आदये दिल नवाज़ थी
वो यारे कम सुखन कई हिकयते सुना गया
अब एक हुजुमे आसीकां है हर तरफ रबा-दबा
वो एक रह नूर जो खुद को काफला बना गया
दिलों से वो गुज़र गया शुआयें महेर की तरह
घंने उदास जंगलों में रास्ता बना गया
कभी कभी तो यूँ हुआ है इस रियाज़ो बहर में
के एक फूल गुलिस्तां की आबरू बचा गया
शरीके बज़्मे दिल भी है चिराग भी है फूल भी
मगर जो जाने अंजुमन था वप कहा चला गया
उठो सितम ज़दो चले ये दुख कड़ा सही मगर
वो खुश नसीब है ये ज़ख़्म जिसको रास आ गया
ये आंसुओं के हार खु बहा नहीं है दोस्तों
के वो तो जान दे के क़र्ज़े दोस्ताँ निभा गया
Faraz Poetry
फिर तेरे न खबर शाम में आयी
ज़हर अब की तल्ख़ सी मेरे जाम में आयी
ऐ काश न पूरा हो कोई भी मेरा अरमान
और ये तमन्ना दिले न काम में आयी
क्या क्या न ग़ज़ल उसकी जुदायी में कहि है
बर्बादी जान भी तो किसी काम में आयी है
कुछ तेरा सरापा मेरे अशआर में उतरा
कुछ शायरी मेरी तेरे इनाम में आयी है
कब तक ग़मे दौरा मुझे फ़ितरक में रखता
आखिर को तो दुन्याँ भी मेरे दाम में आयी है
कल शाम के था शेखे हरम साहिबे मैफिल
शेबा की परी जमा अहराम में आयी है
हर चंद फ़राज़ एक फकीरे सरे रह हु
पर मुमलकिते हर्फ़ मेरे नाम में आयी है