बदन में आग है, चेहरा गुलाब जैसा है
के ज़हर-ए-गम का नशा, शराब जैसा है
वो सामने है मगर तिशनगी नहीं जाती
ये क्या सितम है, के दरया शराब जैसा है
कहा वो क़ुर्ब के अब तो ये हाल है जैसे
तेरे फ़िराक़ का आलम भी ख्याब जैसा है
मगर कभी कोई देखे कोई पड़े तो सही
दिल आईना है, तो चेहरा गुलाब जैसा है
बाहारे खु से चमन ज़ार बन गए मकतल
जो नखले दार है, शाखे गुलाब जैसा है
फ़राज़ संगे मलामत से ज़ख़्म ज़ख़्म सही
हमही अज़ीज़ है, खाना ख़राब जैसा है
अहमद फ़राज़ की शायरी में आप को दर्द और मोहब्बत दोनों ही देखने को मिलते है फ़राज़ का एक शेयर याद आता ह।
जिसमे मोहबत का अंदाज़ आप को नज़र आएंगे
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते है
सो उसके शहर में कुछ दी ठहर के देखते है ”
रंजिश ही सही दिल दुखने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ जाने के लिए आ
फ़राज़ ने इस में अपने आप को फ़ना कर लिया और हर सितम को अपने लिए उठाया जिसमे दर्द का एहसास नज़र आता है
की कुछ भी सही मगर तू आ तो सही
फ़राज़ का इश्क कमाल का इश्क है फ़राज़ जिस तरहे से इश्क को बताते है शायद किसी ने बताया हो जिसमे विशाल और फ़िराक दो शामिल है
आप बयां करते है की
आशिकी में मीर जैसा ख़्वाब मत देखा करो
पागल हो जायो गे महताब मत देखा करो
फ़राज़ अपने वक्त के ग़ालिब हुए है वैसे उनको क्रिकेट का भी शोक था

Ahmad Faraz Shayari
तड़प उठूं भी तो ज़ालिम तेरी दोहाई न दू
मैं ज़ख़्म ज़ख़्म हु फिर भी तुझे दुहाई न दू
तेरे बदन में धरकने लगा हु दिल की तरहे
ये और बात है के अब भी तुझे सुनाई न दू
खुद अपने आप को परखा तो ये नदामत है
के अब कभी उसे इल्ज़ाम बे वफाई न दू
मेरी वका ही मेरी खुवाईश ए गुन्हा में है
मैं ज़िन्दगी को भी ज़हर पार साई न दू
जो ठन गयी है तो यारी पे हर्फ़ क्यों आये
हरीफ़े जान को भी ताने आशनाई न दू
मुझे भी ढूंढ कभी माहबे आईना दारी
मैं तेरा अक्स हु लेकिन तुझे दिखाई न दू
ये हौसला भी बड़ी बात है शिकस्त के बाद
के दुसरो को तो इल्ज़ाम नार साई न दू
फ़राज़ दौलते दिल है मताये महरूमी
मैं जामे जम के हौज़ कासा गदाई न दू