Aajizi shayari
ग़म से न आंसुओं से न दीवानगी से से हम
वाकिफ नहीं थे आप से पहले किसी से हम
ज़िंदा रखीं बुज़ुर्गो की हम ने रिवायते
दुसमन से भी मिले तो मिले आजिज़ी से हम
सब सर-फिरी हवाओं को दुश्मन बना लिया
रोशन हुए थे लड़ने को इक तीरगी से हम
साँसे महक रही है निगाहो में नूर है
फिर आज मिल के आये है इक आदमी से हम
सूरज तो सिर्फ दिन के उजालो का है इमाम
हम है चिराग से लड़ते है तिरा-शबी से हम
बदनाम हो रहा है मुक्कदर तो बे-सबब
बर्बाद है खुद अपने अमल की कमी से हम
Aajizi shayri
आजिज़ी शायरी प्रेम को बयक्त करती है के आप अपने प्रीतम से कितना प्रेम करते है
अपने दिल की बात को बोलने के लिए आप शायरी का सहारा लेते है
जिस से की आप अपनी बात बोल सके और इज़हार कर सके उस को यक़ी दिला सके
या कभी आप अपने प्रीतम को मानाने के लिए भी एसा करते है जिस से वो खुश हो जाये
ग़मे इश्क रहे गया है, ग़मे जुस्तजू में ढलकर
वो नज़र से छुप गए है, मेरी ज़िन्दगी बदल कर
कुछ इस अंदाज़ में इज़हार किया जाता है
अजीज़ इतना ही रखो कि जी संभल जाये
अब इस क़दर भी ना चाहो कि दम निकल जाये
मोहब्बतों में अजब है दिलों का धड़का सा
कि जाने कौन कहाँ रास्ता बदल जाये
मिले हैं यूं तो बहुत, आओ अब मिलें यूं भी
कि रूह गरमी-ए-इन्फास से पिघल जाये
इस तरहे से बोल कर खुश किया जाता है और अपने प्रीतम को
मनाया जाता
Aajizi dost
आजिज़ी दोस्त या आजिज़ी हमदर्द हम-सफर जो अपने प्यारा होता है
वो हमारे लिए अजीज़ ही होता है उसका ही ख्याल उसकी ही फ़िक्र रहती है
यही फ़िक्र जब एहसास में बदल जाती है तो प्रेम की भाबना उतपन हो जाती है
